बुधवार, दिसंबर 29, 2004
सुनामी पीड़ितों के लिये प्रार्थना
सामन्यतया मैं अपने ब्लाग पर समाचारों की चर्चा नहीं ही करता हू लेकिन सुनामी के कहर और दिल दहला देने वाली तबाही के समाचार सुन कर रहा नहीं जाता. ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि सभी पीड़ित लोगों और उनके परिवारजनों को इस मुसीबत से बाहर निकलने की शक्ति प्रदान करे.
स्वभाव
मेरी आदत है कि अपनी कमज़ोरियों का बखान भी खुल के कर देता हूं. लेकिन मेरी बीवी को मेरी ये हरक़त बिल्कुल भी पसन्द नहीं है. अभी कुछ दिन पहले की बात है जब हमारे मित्र क हमारे यहां सपरिवार रात्रिभोज पर आये हुये थे. मैं कुछ बातें जैसे कि काम में मेरा मन न लगना, आलस, एक बार client site पर मेरी कामचोरी लगभग पकड़ी जाना वग़ैरह के बारे में बोलने लगा. जाहिर है कि हमारी श्रीमती जी को ये बिल्कुल नागवार गुज़रा और उन्होने कई बार कोशिश की बातों के सिलसिले को किसी दूसरी तरफ़ मोड़ दिया जाय.
अगले दिन हमें बीवी ने ख़ूब खरीखोटी सुनाई. मैंने अपनी सफ़ाई में ये कहने की कोशिश की मैं अपनी बुराई खुले और प्रत्यछ रुप से कहता हूं और शायद कई बार नाटकीय अंदाज़ में उसे थोड़ा बढ़ा चढ़ा भी देता हूं. लेकिन अपनी तारीफ़ सूछ्म और अपरोछ ढंग से करता हूं. और मैं तो यही समझता हूं कि ज़्यादातर लोग मेरे अंदाज़ को परख़ कर बात को सही नज़रिये से देख लेते होंगे. लेकिन बीवी ने हमें समझाया कि जरुरत से ज़्यादा विनम्र बनने की कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि इसका मतलब लोग जतायेंगे कि आप तो कमज़ोर हैं. और ज़्यादा खुलेपन से काम लेने की भी कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि ये आपने पांव में कुल्हाड़ी मारने के समान हो सकता है क्यूंकि आफ़िस में चुगली भी हो सकती है.
हमने भी बीवी की बात को मानते हुये निर्णय किया कि हम अपने आप पर संयम रखेंगे और बीच का रास्ता अख़्तयार करेंगे. कुछ ही दिनों बाद हम लोग क के साथ बाहर डिनर पर गये. बीवी ने हमें सख़्त हिदायत दे रखी थी. हमने भी बीवी के हुक्म पर अमल किया और डिनर के दौरान ऐसी कोई भी ऐसी बात नहीं कि जो नकारात्मक या अपने आप को कम साबित करने वाली लगे. बल्कि हर बात को मैंने काफ़ी सकारात्मक ढंग से पेश किया. बाद में हमने घर आके श्रीमतीजी से पूछा तो उन्होनें बताया कि मैं आज के इम्तहान में पास हो गया हूं. उस दिन के बाद से श्रीमतीजी हमसे काफ़ी ख़ुश हैं क्यूंकि हमने उन्हें शिकायत का मौका ही नहीं दिया.
अगले दिन हमें बीवी ने ख़ूब खरीखोटी सुनाई. मैंने अपनी सफ़ाई में ये कहने की कोशिश की मैं अपनी बुराई खुले और प्रत्यछ रुप से कहता हूं और शायद कई बार नाटकीय अंदाज़ में उसे थोड़ा बढ़ा चढ़ा भी देता हूं. लेकिन अपनी तारीफ़ सूछ्म और अपरोछ ढंग से करता हूं. और मैं तो यही समझता हूं कि ज़्यादातर लोग मेरे अंदाज़ को परख़ कर बात को सही नज़रिये से देख लेते होंगे. लेकिन बीवी ने हमें समझाया कि जरुरत से ज़्यादा विनम्र बनने की कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि इसका मतलब लोग जतायेंगे कि आप तो कमज़ोर हैं. और ज़्यादा खुलेपन से काम लेने की भी कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि ये आपने पांव में कुल्हाड़ी मारने के समान हो सकता है क्यूंकि आफ़िस में चुगली भी हो सकती है.
हमने भी बीवी की बात को मानते हुये निर्णय किया कि हम अपने आप पर संयम रखेंगे और बीच का रास्ता अख़्तयार करेंगे. कुछ ही दिनों बाद हम लोग क के साथ बाहर डिनर पर गये. बीवी ने हमें सख़्त हिदायत दे रखी थी. हमने भी बीवी के हुक्म पर अमल किया और डिनर के दौरान ऐसी कोई भी ऐसी बात नहीं कि जो नकारात्मक या अपने आप को कम साबित करने वाली लगे. बल्कि हर बात को मैंने काफ़ी सकारात्मक ढंग से पेश किया. बाद में हमने घर आके श्रीमतीजी से पूछा तो उन्होनें बताया कि मैं आज के इम्तहान में पास हो गया हूं. उस दिन के बाद से श्रीमतीजी हमसे काफ़ी ख़ुश हैं क्यूंकि हमने उन्हें शिकायत का मौका ही नहीं दिया.
शनिवार, दिसंबर 25, 2004
सड़क किनारे पाख़ाना करने वालों पर
(कविता लिखने का मुझमें ज़रा भी शऊर नहीं है. अपने बम्बई प्रवास के दौरान अक्सर सुबह को झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले ग़रीब लोगों को सड़क किनारे लोटा लिये हुए देखता था. उसी पर कुछ पंक्तियां लिख दी थीं. अब इसे इस चिट्ठे में छापने की ज़ुर्रत कर रहा हूं. उम्मीद है कि क़ाबिल पाठक मेरी इस ग़ुस्ताख़ी को माफ़ कर देंगे.)
अलसुबह निकला मैं दौड़ने के लिए
देखा मैंने उसको सड़क किनारे बैठे हुए
हाथ में लोटा और मुंह में दातून लिये
अनचाहे ही मैंने एकबार उसको देखा
अपने दुखों और जमाने से बेफ़िक्र वो बैठा था
मैंने सोचा बेशर्म कहीं का, नहीं बेचारा कहीं का
अचानक मुझे याद आया जब मैं नये घर में आया था
दो के बजाय एक ही संडास पाकर चिल्लाया था
एक ये था जिसने सड़क से ही काम चलाया था
वो तो ख़ैर फिर भी एक मर्द ही था
और शायद इसीलिये बेफ़िक्र सा बैठा था
लेकिन ऐसी औरतों को क्या नहीं सहना होता होगा
जब पड़ती होंगी उनपर बदजात निगाहें
गड़ जाती होंगी जमीन में वो शर्म के मारे
आख़िर वो भी तो होंगी किसी कि मां और बहनें
आख़िर इन लोगों का कसूर है क्या?
यही कि भगवान ने इन्हें ग़रीब बनाया
क्यूं ऊपरवाले ने ऐसा संसार बनाया?
सब लोग इन्हें देखकर अनदेखा कर जाते हैं
ताज़िन्दगी ये लोग ऍसे ही गुज़ार जाते हैं
रोज़ मर मर कर भी, ज़िन्दगी जिये जाते हैं
अलसुबह निकला मैं दौड़ने के लिए
देखा मैंने उसको सड़क किनारे बैठे हुए
हाथ में लोटा और मुंह में दातून लिये
अनचाहे ही मैंने एकबार उसको देखा
अपने दुखों और जमाने से बेफ़िक्र वो बैठा था
मैंने सोचा बेशर्म कहीं का, नहीं बेचारा कहीं का
अचानक मुझे याद आया जब मैं नये घर में आया था
दो के बजाय एक ही संडास पाकर चिल्लाया था
एक ये था जिसने सड़क से ही काम चलाया था
वो तो ख़ैर फिर भी एक मर्द ही था
और शायद इसीलिये बेफ़िक्र सा बैठा था
लेकिन ऐसी औरतों को क्या नहीं सहना होता होगा
जब पड़ती होंगी उनपर बदजात निगाहें
गड़ जाती होंगी जमीन में वो शर्म के मारे
आख़िर वो भी तो होंगी किसी कि मां और बहनें
आख़िर इन लोगों का कसूर है क्या?
यही कि भगवान ने इन्हें ग़रीब बनाया
क्यूं ऊपरवाले ने ऐसा संसार बनाया?
सब लोग इन्हें देखकर अनदेखा कर जाते हैं
ताज़िन्दगी ये लोग ऍसे ही गुज़ार जाते हैं
रोज़ मर मर कर भी, ज़िन्दगी जिये जाते हैं
बुधवार, दिसंबर 22, 2004
पाप नगरी
करीब एक महीना पहले मैं सपरिवार ३ दिन के लिए लास वेगास घूम के आया हूं. वैसे तो इस शहर को पाप नगरी (Sin City) के नाम से जाना जाता है लेकिन वहां पर ऐसा लग रहा था कि किसी भी पवित्र नगरी के मुक़ाबले में यहाँ पर ज़्यादा आनन्द है. हर आदमी अपनी धुन में मस्त था. कुछ क़िताबें कहतीं हैं कि चाहे आप इस शहर को पसंद कीजिए या फिर नफ़रत करें लेकिन एक बार देखें जरूर. मेरे अपने अनुभव के बाद मैं भी इस बात से कुछ हद तक सहमत हूं.
हम लोग वहां पर ३ दिन रहे. वैसे तो ये पाप नगरी वयस्क मनोरंजन के लिय॓ ज़्यादह मशहूर (या फिर बदनाम)है लेकिन हमे पारिवारिक द्रश्टिकोण से भी काफ़ी अच्छा लगा. मेरी पत्नि और बच्चे दोनों को वहां काफ़ी अच्छा लगा. रेगिस्तान के बीचोंबीच में ये आधुनिक स्वर्ग बसाया गया है. इस शहर के लोगों की जीवनधारा पर्यटन उधोग से जुड़ी है. पूरा शहर बड़े बड़े होटलों और सैलानियों से आबाद है.
यहां की सबसे मुख्य जगह है लास वेगास बुलेवर्ड रोड जिस के दोनों तरफ़ कसीनो होटेल हैं. इस मेन रोड को स्ट्रिप (Strip) कहते हैं. ज्यादातर समय लोग इसी स्ट्रिप के आसपास गुज़ारते हैं. हर होटेल काफी बड़ा है और होटेल की इमारत किसी न किसी थीम पर आधारित है. कोई मिस्र के पिरामिड की तरह बना है, कोई किले की तरह बना है , कोई महल की तरह बना है. हर होटेल में जुआघर (Casino) के साथ साथ मदिरापान , शापिंग बाज़ार और बच्चों के खेलने की जगहें हैं.
हर होटेल इस होड़ में लगा है कि कैसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को अपने होटेल की तरफ आकर्षित किया जा सके. इसलिए हर होटेल में तरह तरह के मनोरंजक प्रोग्राम जैसे कि सर्कस , जिमनास्टिक , ड्रामा इत्यादि चलते रहते हैं. यहाँ पर हर चीज़ भव्य स्तर पर बनायी जाती है. कहते हैं कि जैसे ही कोई होटेल १०-१५ साल पुराना हो जाता है उसे तोड़ के उसी जगह पर नये नाम से एक नया होटेल बना दिया जाता है.
लास वेगास से एक दिन का बस टूर लेके हम लोग भव्य गहरी घाटी (Grand Canyon) देखने गये. ये कैन्यन वाकई भव्य और बहुत ही ख़ूबसूरत है. कुदरत का ये करिश्मा वाकई लाज़वाब है. ये गहरी घाटी काफ़ी बड़ी है और इसे तीन तरफों से देखा जा सकता है. हम लोग पश्चिमी हिस्से की तरफ से देखने गये थे. यहां के हिस्से के आसपास की जमीन सरकार ने अमेरिकन मूलनिवासियों की हुआलापाई जाति को दे रखी है और इसका नाम है हुआलापाई इंडियन रिज़र्वेशन.
मंगलवार, दिसंबर 21, 2004
शान्ति भंग
दोस्तों,
पिछले २ सालों से मैं यहां Bay Area मेँ एक ही client के साथ एक ही प्रोजेक्ट में काम कर रहा था. घर से आफ़िस सिर्फ़ १० मिनट पैदल दूरी पर था,लेकिन जैसे कि कुछ समय से मुझे जिस बात का डर था वही बात हो गई और इस प्रोजेक्ट की समाप्ति हो गई है. और मुझे नये प्रोजेक्ट में डाल दिया गया है. आप पूछेंगें कि इसमें समस्या क्या है, तो दरअसल बात ये है कि मुझे एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम को कार में commuting करनी पड़ रही है. और सिर्फ़ यही नहीं जहां पहले दिन में सिर्फ़ ३-४ घंटे का काम होता था वहीं अब ८-१० घंटे रगड़ के काम करना पड़ रहा है.
एक तरफ़ मेरा मन कहता है कि जरा मर्द के बच्चे बनो तो एक दूसरी आवाज़ कहती है कि कहां फँसा दिया यार. इसलिए अपने आप को इन बातों से दिलासा दे रहा हूं कि शायद इस में भी कुछ भला ही निहित होगा. अँग्रेज़ी कहावत This too shall pass तो आपने सुनी ही होगी, तो ये छोटी सी मुश्किल भी गुज़र ही जाएगी.
- रमन
सबसे पहले सभी हिन्दी ब्लागर्स को मेरा प्रणाम. मेरे ब्लाग को पढने और आपके बहुमूल्य कमेन्ट्स के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.आपने इस नौसिखये का काम बना दिया.
पिछले २ सालों से मैं यहां Bay Area मेँ एक ही client के साथ एक ही प्रोजेक्ट में काम कर रहा था. घर से आफ़िस सिर्फ़ १० मिनट पैदल दूरी पर था,लेकिन जैसे कि कुछ समय से मुझे जिस बात का डर था वही बात हो गई और इस प्रोजेक्ट की समाप्ति हो गई है. और मुझे नये प्रोजेक्ट में डाल दिया गया है. आप पूछेंगें कि इसमें समस्या क्या है, तो दरअसल बात ये है कि मुझे एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम को कार में commuting करनी पड़ रही है. और सिर्फ़ यही नहीं जहां पहले दिन में सिर्फ़ ३-४ घंटे का काम होता था वहीं अब ८-१० घंटे रगड़ के काम करना पड़ रहा है.
एक तरफ़ मेरा मन कहता है कि जरा मर्द के बच्चे बनो तो एक दूसरी आवाज़ कहती है कि कहां फँसा दिया यार. इसलिए अपने आप को इन बातों से दिलासा दे रहा हूं कि शायद इस में भी कुछ भला ही निहित होगा. अँग्रेज़ी कहावत This too shall pass तो आपने सुनी ही होगी, तो ये छोटी सी मुश्किल भी गुज़र ही जाएगी.
- रमन
रविवार, दिसंबर 12, 2004
ज़िन्दगी झन्ट
UP में मेरे कस्बे में जब भी किसी को ये कहना होता था कि उन के साथ कुछ ठीक नहीं चल रहा है तो लोग कहते थे कि ज़िन्दगी झन्ट हो गई है पिछले कुछ दिनों से मेरी ज़िन्दगी भी झन्ट हो गई है मैं काफ़ी depressed महसूस कर रहा था, इस वज़ह से परेशान सा था इसकी कई वज़हें थीं और हैं लेकिन इस वक़्त उन पे ज्यादा खुलासा नहीं कर रहा हूं
वैसे अब मैं काफ़ी ठीक महसूस कर रहा हूं ब्लागिंग का ये नया शौक भी काफ़ी मदद पहुंचा रहा है बीच बीच में टेनिस भी खेलता रहता हूं आफ़िस के काम मुझे बिल्कुल भी मज़ा नहीं आता लेकिन क्या करे आजीविका के लिये पैसों का यही एकमात्र स्रोत है
वैसे अब मैं काफ़ी ठीक महसूस कर रहा हूं ब्लागिंग का ये नया शौक भी काफ़ी मदद पहुंचा रहा है बीच बीच में टेनिस भी खेलता रहता हूं आफ़िस के काम मुझे बिल्कुल भी मज़ा नहीं आता लेकिन क्या करे आजीविका के लिये पैसों का यही एकमात्र स्रोत है
ग़ज़ल - तकी मौधवी
इस कदर बढती जाती हैं मजबूरियां , हर नफ़स है ग़रां ज़िन्दगी के लिए
गो बहुत तल्ख़ है जामे-उल्फ़त मगर , इक सहारा तो है आदमी के लिए
दिल में नाकामियों का तआसुर लिए , लौटना अपनी मन्ज़िल से बेसूद है
रास्ते पुरख़तर हैं तो होते रहें , हौसला चाहिए आदमी के लिए
आज तक ये मुअम्मा न समझा कोई, और शायद न कोई समझ पाएगा
ज़िन्दगी आई है मौत के वास्ते , या कि मौत ज़िन्दगी के लिये
लोग जश्ने-चराग़ां मनाते रहे , जाने कितने शहर जगमगाते रहे
इक तरफ़ आलमे-तीरगी में पड़े , हम तरसते रहे रौशनी के लिये
मुझपे इल्ज़ामे-तख़रीबकारी न रख , बाग़बां मैं चमन का वफ़ादार हूं
रंज़ो-ग़म जाने कितने गवारा किये , मैंने तेरे चमन की ख़ुशी के लिये
ये वो दौरे-पुराशोब है दोस्तों , जिसमें कोई किसीका भी हमदम नहीं
कौन हमदर्द होगा किसी का 'तकी' , आदमी जब नहीं आदमी के लिये
गो बहुत तल्ख़ है जामे-उल्फ़त मगर , इक सहारा तो है आदमी के लिए
दिल में नाकामियों का तआसुर लिए , लौटना अपनी मन्ज़िल से बेसूद है
रास्ते पुरख़तर हैं तो होते रहें , हौसला चाहिए आदमी के लिए
आज तक ये मुअम्मा न समझा कोई, और शायद न कोई समझ पाएगा
ज़िन्दगी आई है मौत के वास्ते , या कि मौत ज़िन्दगी के लिये
लोग जश्ने-चराग़ां मनाते रहे , जाने कितने शहर जगमगाते रहे
इक तरफ़ आलमे-तीरगी में पड़े , हम तरसते रहे रौशनी के लिये
मुझपे इल्ज़ामे-तख़रीबकारी न रख , बाग़बां मैं चमन का वफ़ादार हूं
रंज़ो-ग़म जाने कितने गवारा किये , मैंने तेरे चमन की ख़ुशी के लिये
ये वो दौरे-पुराशोब है दोस्तों , जिसमें कोई किसीका भी हमदम नहीं
कौन हमदर्द होगा किसी का 'तकी' , आदमी जब नहीं आदमी के लिये
ग़ज़ल - हामिद बहराईची
इन आंखों में बरसात का आंगन न मिलेगा
तुम लौट के आओगे तो सावन न मिलेगा
कि रोके से रुकेंगे न ये बहते हुए आंसू
जब जाके इन्हें आपका दामन न मिलेगा
कान्हा तेरी मुरली की सदा कौन सुनेगा
राधा तो मिलेगी यहां मधुबन न मिलेगा
'हामिद' न यकीं आए तो तुम देख लो आके
घर पे मेरे टूटा हुआ बर्तन न मिलेगा
तुम लौट के आओगे तो सावन न मिलेगा
कि रोके से रुकेंगे न ये बहते हुए आंसू
जब जाके इन्हें आपका दामन न मिलेगा
कान्हा तेरी मुरली की सदा कौन सुनेगा
राधा तो मिलेगी यहां मधुबन न मिलेगा
'हामिद' न यकीं आए तो तुम देख लो आके
घर पे मेरे टूटा हुआ बर्तन न मिलेगा
शुक्रवार, दिसंबर 10, 2004
शुरूआत
बहुत दिनों से हिन्दी ब्लाग लिखने का विचार था , लेकन ये शुरु नहीं हो रहा था. अब जा के इस की शुरूआत कर रहा हूं . तकरीबन १ महीने पहले मैंने अंग्रेज़ी ब्लाग लिखना शुरु किया है. बीच बीच में अन्य हिन्दी ब्लाग भी पढता रहता हूं.