रविवार, दिसंबर 12, 2004

ग़ज़ल - हामिद बहराईची

इन आंखों में बरसात का आंगन न मिलेगा
तुम लौट के आओगे तो सावन न मिलेगा

कि रोके से रुकेंगे न ये बहते हुए आंसू
जब जाके इन्हें आपका दामन न मिलेगा

कान्हा तेरी मुरली की सदा कौन सुनेगा
राधा तो मिलेगी यहां मधुबन न मिलेगा

'हामिद' न यकीं आए तो तुम देख लो आके
घर पे मेरे टूटा हुआ बर्तन न मिलेगा

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