गुरुवार, जनवरी 27, 2005

टेनिस , आस्ट्रेलियन ओपेन और सानिया

इधर आस्ट्रेलियन ओपेन के कुछ कुछ मैचों का मज़ा ले रहा हूँ. समाचारों में पढ़ा कि रोजर फेडरेर और सफ़िन के बीच बहुत ही ज़बरदस्त मुक़ाबला हुआ. रोजर भैय्या , जो कि पिछले १-२ सालों से एकदम अपराजेय थे, उनको सफ़िन ने साढ़े ४ घंटे के जबरदस्त युद्ध के बाद मात दी. आज मै बहुत ही बेचैन हूं और रोजर फेडरेर और सफ़िन का ये मैच देखना चाहता हूं लेकिन ये मैच ठीक दोपहर में आ रहा है जब मैं आफ़िस में मैं अपना सर खपा रहा हूंगा. इस नये प्रोजेक्ट की ८ १० घंटे की मशक्कत और २ ३ घंटे की commuting ने मेरे weekdays की ऐसी मट्टीपलीद की है कि पूछिये मत. समय की इतनी जबरदस्त कमी चली रही कि क्या बतायें.

कल रात को मारिया शरापोवा और सेरिना विलियम्स का मैच भी बहुत ही धुआंधार हुआ. आखिरी सैट में तो दोनों बिल्कुल करो य मरो के मूड में आकर खेल रहीं थी. तीन बार मारिया जीत के बिल्कुल करीब पहुँच गई थी लेकिन सेरीना ने मारिया के मुँह से जीत निकालकर अपनी जीत दर्ज की.

ओपेन की शुरूआत में अपनी हैदराबादी पोट्टी सानिया ने भी बहुत ही धमाकेदार तरीके से खेला और पूरे हिन्दुस्तान में सनसनी फैला दी. उम्मीद है सानिया दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की करेगी और भारत का नाम रौशन करेगी. सानिया के प्रदर्शन से टेनिस की तरफ़ लोगों का ध्यान बढ़ेगा और बहुत सारे नये उभरते खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिलेगा.

मंगलवार, जनवरी 11, 2005

अरेंज्ड लव

मुझसे जब भी कोई कोई पूछता है कि आपकी अरेंज्ड मैरिज हुई थी या फिर लव मैरिज, तो मैं बोलता हूँ कि जी नहीं हमारा अरेंज्ड लव हुआ था. सच पूछये तो मेरा पहला प्यार भी मेरी अरेंज्ड मैरिज से ही शुरू हुआ था.

Akshargram Anugunj


इससे पहले की मैं आपको अपने अरेंज्ड लव के बारे मेँ बताऊं, मैं उससे पहले के प्यार संबंधी जो भी मेरे अनुभव है वो आपके सामने हाज़िर करता हूं.. किशोरावस्था में लड़कियों की तरफ़ आकर्षण और इकतरफ़ा प्यार तो कई बार हुआ लेकिन कोई भी बात मेरी तरफ़ से दूसरी तरफ़ न गई और दिल की बात दिल ही में रह गई .. इसकी मुख्य वजह ये थी कि मैं लड़कियों के साथ बात करने में असहज हो जाता था और लड़कियों से कभी खुल के बात नहीं कर पाता था. शायद इस लिये कि जिस माहौल में मैं पला बढ़ा उसमें हमारा लड़कियों के साथ मिलना जुलना बहुत कम ही था, या फिर मैं लड़कियों के मामले में मैं शुरु से ही डरपोक था.

कालेज की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद मैं नया नया बंबई पहुँचा था .. जल्द ही मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गई .. हम लोगों का २०-२५ trainees का एक ग्रुप था .. इसमें ४-५ लड़कियां भी थीं .. मैं इनमें से एक लड़की संजना को मन ही मन चाहने लगा और उससे मेलजोल बढ़ाने की कोशिश करने लगा लेकिन संजना ने उल्टा मुझसे दूरी बनाना शुरु कर दी, शायद उसे ऐसा लगता था कि मैं सिर्फ़ उसे पटाना चाहता हूँ .उस वक्त तो मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन अब सोचता हूं तो लगता है वो सिर्फ़ जवानी का एक शग़ल था.

कुछ दिनों बाद ही मेरे लिये एक रिश्ता आया. मैं अपने मां और पिताजी के साथ अपनी होने वाली पत्नि के घर पहुंचा. सबकी मौज़ूदगी में ही में मैंने अपनी भावी पत्नि से १०-१५ मिनट तक बात की. मेरे सामने बैठी हुई लड़की मुझे हर तरह से अच्छी लग रही थी और मैं मन ही मन फूला नहीं समा रहा था. जल्द ही हमारा रिश्ता तय हो गया. इसके बाद शुरु हुआ हमारा अरेंज्ड लव. रोज़ रात को देर देर तक हम लोगों की फोन पर बातें होती थीं. आफ़िस में मेरा मन नहीं लगता था और अपनी मंगेतर का ख़ूबसूरत चेहरा सपनों में नज़र आता था. अक्सर वीकेन्ड पर हम लोग बाहर जाते थे और होता था साथ में घूमना, पिक्चर देखना और रेस्तरां में प्यार भरी बातें करना. सोते जागते हर पल मेरे दिमाग में मेरी मंगेतर की तस्वीर रहती थी.

इधर आफ़िस में संजना के स्वभाव में मैने तब्दीली महसूस की, और वो मुझे Ignore करने के बजाय मुझ पर ज्यादा ही मेहरबान होने लगी थी. शायद अब मुझसे उसे किसी किस्म के खतरे का अहसास नहीं था या फिर उसे कुछ लड़कियों वाली ईर्ष्या होने लगी थी. बहरहाल जो भी हो अब मैं तो उससे सिर्फ़ औपचारिक तौर पर ही मिलता था.

मंगनी के कुछ महीने बाद ही कम्पनी ने मुझे लंदन १ साल के प्रोजेक्ट पर भेज दिया. और फिर शुरू हुआ हम लोगों का लांग डिसटैन्स रोमांस. हम लोग काफ़ी देर तक फोन पर बातें करते थे.. इससे और कोई ख़ुश हो न हो लेकिन ब्रिटिश टेलीकाम वाले जरुर ख़ुश रहते थे क्योंकि मेरा टेलीफोन बिल काफ़ी बढ़ जाता था. मैं फोन के जरिये अपनी मंगेतर को लंदन के नजारे दिखाता था. कभी कभी हम दोनों का इतना दूर होना मुझे बहुत अखरता था. कहते है कि दूरी से प्यार की कसक और बढ़ जाती है.

लगभग एक साल के बाद मैं लंदन से वापस लौटा. हम लोगों का मिलना जुलना फिर से शुरु हो गया. कुछ महीनों बाद हम लोगों की शादी हो गई और हमारा प्यार शादी के अटूट बंधन में बंध गया.

बुधवार, जनवरी 05, 2005

बम्बई मेरी जान

कुछ दिनों पहले सुकेतू मेहता की क़िताब maximum-city पढी तो बम्बई की यादें ताज़ा हो गईं. अपने कालेज के दिनों में मुझे बंबई के प्रति ज़बरदस्त आकर्षण था. जब भी किसी बातचीत में बंबई का नाम आता था तो मेरे चहरे पे एक ख़ास क़िस्म की मुस्कान आ जाती थी जैसे की किसी ने मेरी स्वपन नगरी का नाम ले लिया या फिर मेरे मन की बात कह दी हो. कालेज की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद मैं अपना बोरिया बिस्तर ले के अपनी कर्मभूमि बंबई में पहुँच गया.

बंबई के एक सुदूर उपनगर में मैं अपने एक रिश्तेदार के यहां रहता था. मैंने नौकरी ढूंढना शुरू कर दी. और बंबई की लोकल ट्रेनों में मेरी आवाजाही शुरू हो गई. ६ महीने के शुरूआती संघर्ष के बाद मुझे एक बहुत ही अच्छी नौकरी मिल गई और इस तरह से बंबई के साथ मेरा रोमांटिक अफ़ेयर शुरू हो गया.

मुझे बंबई की ज़िन्दगी रास आने लगी और मैं बंबईया रंग में डूबने लगा. शुरू शुरू में बंबई की हर शै मस्त लगती थी, ट्रेनों मे भजन मंडली गाते लोग , बंबईया हिन्दी बोलते लोग , हर वक़्त व्यस्त रहने वाले लोग, घूमने की जगहें जैसे गेटवे आफ़ इंडिया, जूहू बीच , चौपाटी बीच , मछलीघर आदि. तरह तरह के रेस्टारेन्ट और पब्स. मेरे दिन हंसीख़ुशी में गुज़र रहे थे. इन दिनों मेरे दिल में इस तरह के विचार आते थे.

न जाने क्या बात है , बम्बई तेरे शबिस्तां में
कि हम शामे-अवध, सुबहे-बनारस छोड़ के आ गये

लेकिन धीरे धीरे हालात बदलने लगे या फिर मेरा नज़रिया बदलने लगा. कुछ तो आफ़िस में काम का प्रेशर , कुछ commuting की थकान , कुछ मेरी सेहत की बदहाली , कुछ बंबई की भागदौड़ वाली ज़िन्दगी इन सब चीज़ों ने मेरा जीवन मुश्किल कर दिया. जैसे जैसे ३‍ ४ साल गुज़रे बंबई से मेरा मोहभंग होता गया और मुझे बंबई के जीवन से घ्रणा और डर लगने लगा. चारों तरफ़ भीड़, गन्दगी , भागदौड़ , ग़रीबी और मारामारी ये सब देखकर मेरे अंदर घबराहट सी पैदा हो जाती थी और मेरे हौसले पस्त होने लगे थे. मुझे अपनी हालत 'गमन' फ़िल्म के हीरो की तरह लगती जो बंबई मे परेशानहाल होके ऐसे कहता है.

सीने में जलन , आंखों में तूफ़ान सा क्यों है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है

आज़ भी हलांकि मैं एक तरह से बंबई के नाम से घबराता हूं या फिर नफ़रत करता हूं,लेकिन फिर भी मेरे दिल का कोई कोना अभी भी बंबई से जुड़ा हुआ महसूस करता है बिल्कुल ऐसे जैसे आदमी अपने पहले प्यार को कभी भुला नहीं पाता है.

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