मंगलवार, दिसंबर 21, 2004

शान्ति भंग

दोस्तों,

सबसे पहले सभी हिन्दी ब्लागर्स को मेरा प्रणाम. मेरे ब्लाग को पढने और आपके बहुमूल्य कमेन्ट्स के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.आपने इस नौसिखये का काम बना दिया.

पिछले २ सालों से मैं यहां Bay Area मेँ एक ही client के साथ एक ही प्रोजेक्ट में काम कर रहा था. घर से आफ़िस सिर्फ़ १० मिनट पैदल दूरी पर था,लेकिन जैसे कि कुछ समय से मुझे जिस बात का डर था वही बात हो गई और इस प्रोजेक्ट की समाप्ति हो गई है. और मुझे नये प्रोजेक्ट में डाल दिया गया है. आप पूछेंगें कि इसमें समस्या क्या है, तो दरअसल बात ये है कि मुझे एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम को कार में commuting करनी पड़ रही है. और सिर्फ़ यही नहीं जहां पहले दिन में सिर्फ़ ३‍-४ घंटे का काम होता था वहीं अब ८-१० घंटे रगड़ के काम करना पड़ रहा है.

एक तरफ़ मेरा मन कहता है कि जरा मर्द के बच्चे बनो तो एक दूसरी आवाज़ कहती है कि कहां फँसा दिया यार. इसलिए अपने आप को इन बातों से दिलासा दे रहा हूं कि शायद इस में भी कुछ भला ही निहित होगा. अँग्रेज़ी कहावत This too shall pass तो आपने सुनी ही होगी, तो ये छोटी सी मुश्किल भी गुज़र ही जाएगी.

- रमन


Comments:
हिन्दी में भी कहा गया है:-

न वो दिन रहे न ये रहेंगे.

या फिर जैसा कहा है किसी शायर ने:-

लम्बी है गम की शाम ,कट जायेगी- शाम ही तो है.
 
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अनूप,

दोनों ही लाइन्स बड़ी खूबसूरत हैं. हिन्दी पर आपकी गहरी पकड़ है. इसी तरह से अपने कमेन्ट्स से हमे नवाज़ते रहिए.
 
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