मंगलवार, जनवरी 11, 2005
अरेंज्ड लव
मुझसे जब भी कोई कोई पूछता है कि आपकी अरेंज्ड मैरिज हुई थी या फिर लव मैरिज, तो मैं बोलता हूँ कि जी नहीं हमारा अरेंज्ड लव हुआ था. सच पूछये तो मेरा पहला प्यार भी मेरी अरेंज्ड मैरिज से ही शुरू हुआ था.
इससे पहले की मैं आपको अपने अरेंज्ड लव के बारे मेँ बताऊं, मैं उससे पहले के प्यार संबंधी जो भी मेरे अनुभव है वो आपके सामने हाज़िर करता हूं.. किशोरावस्था में लड़कियों की तरफ़ आकर्षण और इकतरफ़ा प्यार तो कई बार हुआ लेकिन कोई भी बात मेरी तरफ़ से दूसरी तरफ़ न गई और दिल की बात दिल ही में रह गई .. इसकी मुख्य वजह ये थी कि मैं लड़कियों के साथ बात करने में असहज हो जाता था और लड़कियों से कभी खुल के बात नहीं कर पाता था. शायद इस लिये कि जिस माहौल में मैं पला बढ़ा उसमें हमारा लड़कियों के साथ मिलना जुलना बहुत कम ही था, या फिर मैं लड़कियों के मामले में मैं शुरु से ही डरपोक था.
कालेज की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद मैं नया नया बंबई पहुँचा था .. जल्द ही मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गई .. हम लोगों का २०-२५ trainees का एक ग्रुप था .. इसमें ४-५ लड़कियां भी थीं .. मैं इनमें से एक लड़की संजना को मन ही मन चाहने लगा और उससे मेलजोल बढ़ाने की कोशिश करने लगा लेकिन संजना ने उल्टा मुझसे दूरी बनाना शुरु कर दी, शायद उसे ऐसा लगता था कि मैं सिर्फ़ उसे पटाना चाहता हूँ .उस वक्त तो मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन अब सोचता हूं तो लगता है वो सिर्फ़ जवानी का एक शग़ल था.
कुछ दिनों बाद ही मेरे लिये एक रिश्ता आया. मैं अपने मां और पिताजी के साथ अपनी होने वाली पत्नि के घर पहुंचा. सबकी मौज़ूदगी में ही में मैंने अपनी भावी पत्नि से १०-१५ मिनट तक बात की. मेरे सामने बैठी हुई लड़की मुझे हर तरह से अच्छी लग रही थी और मैं मन ही मन फूला नहीं समा रहा था. जल्द ही हमारा रिश्ता तय हो गया. इसके बाद शुरु हुआ हमारा अरेंज्ड लव. रोज़ रात को देर देर तक हम लोगों की फोन पर बातें होती थीं. आफ़िस में मेरा मन नहीं लगता था और अपनी मंगेतर का ख़ूबसूरत चेहरा सपनों में नज़र आता था. अक्सर वीकेन्ड पर हम लोग बाहर जाते थे और होता था साथ में घूमना, पिक्चर देखना और रेस्तरां में प्यार भरी बातें करना. सोते जागते हर पल मेरे दिमाग में मेरी मंगेतर की तस्वीर रहती थी.
इससे पहले की मैं आपको अपने अरेंज्ड लव के बारे मेँ बताऊं, मैं उससे पहले के प्यार संबंधी जो भी मेरे अनुभव है वो आपके सामने हाज़िर करता हूं.. किशोरावस्था में लड़कियों की तरफ़ आकर्षण और इकतरफ़ा प्यार तो कई बार हुआ लेकिन कोई भी बात मेरी तरफ़ से दूसरी तरफ़ न गई और दिल की बात दिल ही में रह गई .. इसकी मुख्य वजह ये थी कि मैं लड़कियों के साथ बात करने में असहज हो जाता था और लड़कियों से कभी खुल के बात नहीं कर पाता था. शायद इस लिये कि जिस माहौल में मैं पला बढ़ा उसमें हमारा लड़कियों के साथ मिलना जुलना बहुत कम ही था, या फिर मैं लड़कियों के मामले में मैं शुरु से ही डरपोक था.
कालेज की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद मैं नया नया बंबई पहुँचा था .. जल्द ही मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गई .. हम लोगों का २०-२५ trainees का एक ग्रुप था .. इसमें ४-५ लड़कियां भी थीं .. मैं इनमें से एक लड़की संजना को मन ही मन चाहने लगा और उससे मेलजोल बढ़ाने की कोशिश करने लगा लेकिन संजना ने उल्टा मुझसे दूरी बनाना शुरु कर दी, शायद उसे ऐसा लगता था कि मैं सिर्फ़ उसे पटाना चाहता हूँ .उस वक्त तो मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन अब सोचता हूं तो लगता है वो सिर्फ़ जवानी का एक शग़ल था.
कुछ दिनों बाद ही मेरे लिये एक रिश्ता आया. मैं अपने मां और पिताजी के साथ अपनी होने वाली पत्नि के घर पहुंचा. सबकी मौज़ूदगी में ही में मैंने अपनी भावी पत्नि से १०-१५ मिनट तक बात की. मेरे सामने बैठी हुई लड़की मुझे हर तरह से अच्छी लग रही थी और मैं मन ही मन फूला नहीं समा रहा था. जल्द ही हमारा रिश्ता तय हो गया. इसके बाद शुरु हुआ हमारा अरेंज्ड लव. रोज़ रात को देर देर तक हम लोगों की फोन पर बातें होती थीं. आफ़िस में मेरा मन नहीं लगता था और अपनी मंगेतर का ख़ूबसूरत चेहरा सपनों में नज़र आता था. अक्सर वीकेन्ड पर हम लोग बाहर जाते थे और होता था साथ में घूमना, पिक्चर देखना और रेस्तरां में प्यार भरी बातें करना. सोते जागते हर पल मेरे दिमाग में मेरी मंगेतर की तस्वीर रहती थी.
इधर आफ़िस में संजना के स्वभाव में मैने तब्दीली महसूस की, और वो मुझे Ignore करने के बजाय मुझ पर ज्यादा ही मेहरबान होने लगी थी. शायद अब मुझसे उसे किसी किस्म के खतरे का अहसास नहीं था या फिर उसे कुछ लड़कियों वाली ईर्ष्या होने लगी थी. बहरहाल जो भी हो अब मैं तो उससे सिर्फ़ औपचारिक तौर पर ही मिलता था.
मंगनी के कुछ महीने बाद ही कम्पनी ने मुझे लंदन १ साल के प्रोजेक्ट पर भेज दिया. और फिर शुरू हुआ हम लोगों का लांग डिसटैन्स रोमांस. हम लोग काफ़ी देर तक फोन पर बातें करते थे.. इससे और कोई ख़ुश हो न हो लेकिन ब्रिटिश टेलीकाम वाले जरुर ख़ुश रहते थे क्योंकि मेरा टेलीफोन बिल काफ़ी बढ़ जाता था. मैं फोन के जरिये अपनी मंगेतर को लंदन के नजारे दिखाता था. कभी कभी हम दोनों का इतना दूर होना मुझे बहुत अखरता था. कहते है कि दूरी से प्यार की कसक और बढ़ जाती है.
लगभग एक साल के बाद मैं लंदन से वापस लौटा. हम लोगों का मिलना जुलना फिर से शुरु हो गया. कुछ महीनों बाद हम लोगों की शादी हो गई और हमारा प्यार शादी के अटूट बंधन में बंध गया.