शनिवार, अप्रैल 16, 2005

शोभा डे : 'सितारों की रातें'

अभी हाल ही में शोभा डे की किताब 'सितारों की रातें' पड़ी है. ये शोभा की अंग्रेज़ी क़िताब Starry Nights का हिन्दी अनुवाद है. शोभा जी के लिखने के स्टाईल को कुछ लोग साफ्ट पोर्न कहते हैं तो कुछ लोग इसे पल्प फिक्शन भी कहते है. बहरहाल मुझे न तो ये पता है कि पल्प फिक्शन क्या होता है और नही ये पता है कि इस किताब को साफ्ट पोर्न या पल्प फिक्शन की श्रेणी में डालना चाहिये. मैं तो सिर्फ इस किताब के कुछ खास पहलूओं के बारे में अपना नज़रिया पेश कर रहा हूं.

१. बेहतरीन हिन्दी अनुवाद

इस किताब के हिन्दी अनुवादक का नाम मोज़ेज़ माईकल लिखा है. कभी इनका नाम नहीं सुना है लेकिन इतना जरूर कहना पड़ेगा कि बहुत ही बेहतरीन अनुवाद किया है. एकदम चुस्त और फर्राटेदार आम बोलचाल वाली हिन्दी और उर्दू का प्रयोग किया है इन्होने. कहीं पे भी ऐसा नहीं लगता कि अनुवाद किया गया है और भाषा बिल्कुल भी बोझिल नहीं लगती. अनुवाद का एक नमूना नीचे देखिये.

" उसकी बगल में बैठे आदमी का कसमसाना पहले ही शुरू हो गया था. किशनभाई ने धीमे से उसे गरियाया. सिंथेटिक कपड़े का नीला कुरता‍ पाजामा पहने यह दो कौड़ी का भंगी आज रात गोपालजी बना बैठा है. ,गोपालजी माई फूट,, उसने फनफनाते हुये धीमे से कहा. वह कोई गोपालजी वोपालजी नहीं था. वह तो मुंबई की गंदी नालियों का भंगी था, भंगी. और आज वही कुतिया का पिल्ला प्रोड्यूसर बना बैठा है. बड़े नाम, बड़े दामवाला प्रोड्यूसर. हरामजादा ! अभी सात साल पहले यही आदमी किशनभाई की प्रोडक्शन कंपनी में यूनिट की जीहुजूरी किया करता था. "

२. चुस्त , तेजतर्रार , पेजटर्नर (पन्ना पल्टो) स्टाईल

वैसे किताब में कहानी तो कुछ खास नहीं है. खासतौर से ये दिखाया गया है कि मुख्य नायिका शुरुआत में सफलता प्राप्त करने के लिये कैसे सबके साथ हमबिस्तर होती रहती है और इस नर्क में डालने वाला कोई पराया नहीं बल्कि उसकी अपनी मां है. साथ में ये भी दिखाया कि किस तरह से फिल्मी दुनिया पूरी तरह से मर्दों के काबू में हैं. बाद में फिल्मी दुनिया के अंदरूनी रंग ढंग और लटके झटके दिखाये गये हैं. वैसे अभी हाल ही में मीडिया में कास्टिंग काऊच को लेकर काफ़ी हल्ला भी हुआ था.

लेकिन कहानी या प्लाट न होने के बावजूद भी किताब एकदम चुस्त, तेजतर्रार पेजटर्नर अंदाज में लिखी गई है. गालीगलौज और गन्दी भाषा का भी खुलकर किया गया है. किताब की ये विशेषता है कि एकबार आप किताब पढ़ना शुरू करेंगे तो फर्र फर्र पढ़ते चले जायेंगे और किताब छोड़ नहीं पायेंगे.

३. साफ्ट पोर्न , सेक्स की अधिकता

किताब में सेक्स के बारे बहुत ही खुला खुला और बार बार लिखा गया है. हर तरीके के सेक्स एनकाऊंटर्स का बहुत ही खुला खुला और पूरा पूरा वर्णन है. कुछ भी लाग लपेट के बजाय सेक्स को एक खेल , एक जश्न या महाआनंद की तरह भी पेश किया गया है. कुछ लोगों को सेक्स की अधिकता एक बीमार मानसिकता भी लग सकती है. कुछ बानगी नीचे देखिये.

"मालिनी ने चीखते हुए कहा, "अपने इस साले फलसफे और लेक्चरबाजी को अपने चूतड़ों में घुसेड़ लो. मुझे तो मेरा पति वापस दो !
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मालिनी ने चीखकर कहा, "सेक्स ! बस यही है तुम्हारे पास ‍, सेक्स ! तुम्हारी जैसी औरतें इसी का इस्तेमाल करती हैं. घटिया कुत्तियों...अपनी टांगें उठाती हो और किसी भी आदमी को अंदर ले लेती हो. सेक्स, सेक्स, सेक्स, गंदा, घिनौना सेक्स! विकृत सेक्सवालियों ! तुम जरूर विकृत सेकस का इस्तेमाल करती होगी. कया करती हो तुम उसके साथ‍, हैं? उसका भंटा चूसती हो? या अपनी छातियों से उसका दम घोंटती हो ?"

"यह कहकर आशा रानी उसके ऊपर चढ़ गई थी, और दिव्य गंध वाला वह तेल डलकर धीरे धीरे उसकी मालिश करने लगी थी. वह किसी लोचदार नर्तकी की तरह हरकत कर रही थी. उसके बाल अक्षय के पूरे सीने पर फैल रहे थे, उसके उरोज अक्षय के मुँह पर आ जा रहे थे, उनकी घुंडियाँ रह रहकर अक्षय के होंठों से छू रही थीं. "सेक्सी औरत, यह सब कहाँ से सीखा तुमने ?" "

४. सारांश

कुलमिला कर ये कोई साहित्यिक किस्म की किताब नहीं है. और कोई ऐसी किताब भी नहीं जिसे पढ़ना एकदम जरुरी कहा जा सकता है. हां लेकिन अगर आप बहुत दिनों से भारी भरकम साहित्यिक किस्म की किताबें पढ़ पढ़ के ऊब चुके हैं तो कभी आप बदलाव के लिये हल्की फ़ुल्की या सतही किस्म की किताब पढ़ना चाहें तो इस किताब को जरूर पढ़ सकते है. एकदम चटपटी गोली की तरह लगेगी यह किताब. बिल्कुल उसी तरह जैसे लगातार शाष्त्रीय संगीत सुनते रहने के बाद बीच मे बदलाव के लियें फिल्मी गाने सुने जाय तो अच्छा लगता है

बाद में इंटरनेट पर उधर उधर देखते हुये मुझे ये भी पता चला है कि यह किताब (अंग्रेज़ी वर्ज़न) बंबई विश्वविद्यालय और कुछ दूसरे विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी शामिल है.

Comments:
शोभा जी बहुत अनुभवी लेखिका हैं ।

अनुनाद
 
एक किताब के बारे में लिखने का अंदाज खूबसूरत है.किताब जो जैसा बताया ,हल्की-फुल्की सर्र-सर्र बांचने लायक है.
 
अभी कुछ दिन पहले ही यही ‍किताब मैंने भी पड़ी थी। लेकिन मेरी राय में तो यह एक सारहीन और निरर्थक किताब है। शोभा जी ने अपना सारा ध्‍यान अश्‍लीलता के वर्णन में ही लगाया है। ज़रूर उन विद्यार्थियों के कुछ पिछले जन्‍म के पाप रहे होंगे, ‍जो उन्‍हें पाठ्यक्रम में यह किताब पढ़नी पड़ रही है। बेचारे प्रेमचन्‍द और शेक्‍सपियर जैसे लोगों कि साहित्‍यिक रचनाओं का क्‍या होगा।
 
अनुनाद,अनूप,प्रतीक

आपके कमेन्टस के लिये बहुत बहुत शुक्रिया..
 
प्रतीक भाई की बात से सहमत हूँ मैं भी कि विद्यार्थियों पे ऐसी किताबें थोप दी जाती हैं। खैर, पुस्तक मुँगफ़ली खाने की तरह टाईम पास है और अच्छा टाईम पास है ये तो मैं मानता हूँ। काश कि शोभा डे जैसे लेखक पाठकों के लिए और भी तरह की किताबें लिख पाते।
 
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