सोमवार, मई 30, 2005

बंटी और बबली (Bunty aur Babli)


bb
Originally uploaded by Raman B.


भाई मजा आ गया ये फिल्म देखकर .. बहुत ही बढ़िया कामेडी .. चुस्त, तेज‍तरार्र बहुत ही बढ़िया डायलाग्स .. बहुत बढ़िया गाने .. बहुत ही अथेंटिक लोकेशन्स .. बहुत बढ़िया अभिनय ... कुल मिला के सब कुछ बहुतै बढ़िया... एकदम टोटल टाईमपास ..

फिल्म के काफी हिस्से की शूटिंग कानपुर लखनऊ और यूपी के दूसरे शहरों में हुई है .. जाहिर है यूपी वालों को और भी मजा आयेगा.. फिल्म की प्रस्तुति में नयापन लगता है.. डायलाग्स यूपी में आमतौर पर बोली जाने वाली भाषा की तरह ही लगते हैं .. जाहिर है कि यूपी के छोटे कस्बे में पले बढ़े होने की वजह से मुझे फिल्म के इस हिस्से में बहुत ही मजा आया ..

फिल्म की कहानी मि. नटवरलाल, Bonnie And Clyde और Catch Me If You Can जैसी फिल्मों की तरह है. फिल्म बहुत ही फास्ट पेस्ड है और चुस्त है.. पटकथा कहीं पर भी बोझिल नहीं होती.

जरूर ये फिल्म देखें और मजा पाईये. आप चाहें तो रीडिफ पर पूरी समीक्षा यहां देख सकते हैं.

मंगलवार, मई 24, 2005

अप्रैजल टाइम (Appraisal time)

कहा जाता है कि चाहे कितनी भी ज्यादा तनख्वाह हो लेकिन हमेशा कम ही लगती है. हर साल की तरह आजकल भी इस साल का अप्रैज़ल चल रहा है. हमेशा की तरह इस साल भी लोग इन्तज़ार कर रहे हैं कि उनको जबर्दस्त रेटिंग मिलेगी और उसी हिसाब से तनख्वाह भी अच्छी खासी बढ़ाई जायेगी. खासतौर से भारत में लोग काफी ज्यादा aggresive हैं इस बारे में, क्यूँकि इस वक्त भारत में बाजार खासा गरम है और लोगों को मनमुआफिक तनख्वाहें मिल रही है. कईयों ने तो इरादा पक्का कर लिया है कि अगर इस बार कम्पनी ने अच्छी बढ़ोत्तरी नहीं दी तो इस कम्पनी से इस्तीफा दे देंगे. उसी हिसाब से लोग जोर शोर से अपना resume बनाने और दूसरी कंपनियों में इंटरव्यू देने में लगे हुये हैं.

अमेरिका में होने की वजह से कुदरतन पिछले दो सालों से कम्पनी ने आनसाईट consultants को ज्यादा महत्व नहीं दिया है. पिछलों दो सालो से अमेरिका में वेतन औसतन 3% तक बढ़ाया गया है जबकि उसके मुकाबले में भारत में १२% से १५% तक की बढ़ोत्तरी हुई है.

जहां एक तरफ लोग अप्रैजल की मारामारी में लगे हुये है, वहीं इधर कुछ सालों से मेरा अप्रैजल से जुड़ाव काफी कम हो गया है. पिछले दो सालों में तो मेरा अप्रैजल तो जैसे हुआ ही नहीं. इस साल भी मेरी बजाय मेरा बास ही हाथ धो के अप्रैजल करने के पीछे पड़ गया था. जैसे तैसे अप्रैजल फार्म भर के उसको पकड़ा दिया. जाहिर है कि मैं वेतन में बढ़ोत्तरी की उम्मीद भी नहीं कर रहा हूं. मैं यूं ही सोच रहा था कि मेरे अप्रैजल से इस तरह से detach होने की वजह कया है? एक तो शायद ये कि मै वैसे ही अपना काम जैसे तैसे करके निपटा रहा हूं और बीच बीच में शार्टकट मारता रहता हूं, हलांकि अभी तक कंपनी मुझे अच्छा कंसल्टैन्ट ही मानती है क्यूंकि अभी तक clients से मेरी फीडबैक अच्छी ही आई है. दूसरा ये कि मेरी प्राथमिकता है शान्तिपूर्ण और stress-free जाब, फिर उसका मतलब भले थोड़े कम पैसे मिलें.

यहां पर एक बात साफ कर देना चाहता हूं कि ए॓सा नहीं हैं कि पैसे से मेरा लगाव या मोह निकल गया हो या फिर ऐसा भी नहीं कि आध्यात्मिक अंदाज मे मैं पैसे को मोह माया का जंजाल या मिथ्या समझूं. हर आम आदमी की तरह मेरी भी यही ख्वाहिश है कि मेरे पास ढेरों पैसे हों और मुझे कभी भी पैसों कि जरूरत होने पर किसी का मोहताज न होना पड़े.

कुल मिला के अगर गलती से मुझे अप्रैजल के बाद ज्यादा वेतन मिलने लगे तो ये नाचीज जरूर खुश हो जायेगा. लेकिन अगर वेतन नहीं बढ़ा तो भी चलेगा.

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